आज एक मुलाकात हुई , इंतज़ार के धैर्य का
इज़हार के अल्फ़ाज़ों से
मन में एक तूफ़ान था , आखिर इज़हार तो
इंतज़ार का मुकाम था।
मन के जज़्बातों को शब्दों में कैद किया
फिर लिखा खत में नाम तुम्हारा;
भीड़ से अलग होकर कब कहां कैसे पता नहीं,
दी तुमने एक दस्तक और बड़े ही इत्मीनान से
मेरे खयालों में बस गई।
हां माना काफ़ी अलग है हम अपने अपने स्वभाव से
कभी कभी धागे उलझकर सुई में अटकते ज़रूर है,
लेकिन;
दोनो साथ हो तो रेशम की तरह
निखर भी आ जाते है।
बस इतना ही लिखकर , भेजा खत को तुम्हारे
ठिकाने ;
अब फिर एक इंतज़ार , समय इतना बिता की
मौसमी फूल भी बदल गए।
एक रोज़ जवाब मिला, उसका ज़रिए भी एक
खत ही था।
एक गहरी सांस ली और पड़ना शुरू किया;
न कभी देखा न जाना न पहचाना
फिरभी लिखावट से सच्चाई ,
और थोड़ी मासूमियत झलकती है।
आपका अंदाज़ा सही था,
अलग है हम, काफ़ी अलग।
इस सुई धागे की जिंदगी में,
एक गांठ की रुकावट है,
इस समय के अंजाम में,
हम भी एक मेहमान है।
इस खत को लिखने का कारण
बस इतना ही है, की कोई तो हो जो
हमे भी याद किया करे;
हमारे लिखावट के लिए
और थोड़ी सराहना भी मिले।
अब तक शायद जा चुकी हूं,
- तुमसे बहुत दूर।
- शतरूपा उपाध्याय
1 Comments
सुनहरी कलम 💜💜
ReplyDelete-संजुक्ता