एक कल्पना ऐसी भी!



कल्पनाएं भी अजीब होती है
हकीकत से मीलों दूर,
बिल्कुल एक कभी खत्म ना होने वाली,
क्षितिज की तरह....

सबकी होती है,
अपनी होती है।
कुछ प्रभाव से बनते ,
तो कुछ परिस्थिति में उलझकर।

कुछ काल्पनिक पृथ्वी के
सहारे भ्रम में जीतें,
और कुछ वर्तमान को 
कल्पना के रूप में ढालते।

कल्पनाएं चाहें कितनी भी
खूबसूरत क्यों न हों,
अगर ज़मीन से ना जुड़े तो
पलक झपकते ही,
आंखों से ओझल होकर
कांच की तरह बिखर सकती है।

आखिर वास्तविकता में
बदलाव मुमकिन है,
मगर कल्पनाओं में
नहीं!

समय के चलते हुए इस पहिये ने
पीछे कई छाप छोड़ दीए है,
शायद उन्हीं से कल्पनाओं को
तराशा जाता है।

कलाकार के लिए कल्पना तो 
एक‌‌ ज़रिया है,
सबको तो बस यथार्थ से
रूबरू करवाना है।

-शतरूपा उपाध्याय

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