खयाल

कुछ शब्द दिल से निकल कर,
कागजों के पन्नों पर उतर आए।
तो कुछ एहसास बनकर,
आंखों में सीमट रहे है।

कुछ खामोशी बनकर सताएं,
तो कुछ जुस्तजू में बह जाए।
कुछ हिचकिचाहट में दबे हुए,
तो कुछ ज़ोर ज़ोर से चीख रहे।

कुछ छोटी छोटी गालियों में गुम है,
तो कुछ सड़को में बेखौफ है।
कुछ ज़बान पर ही रुक गए,
तो कुछ कानों में गूंज रहे है।

कुछ रौशनी की तलाश में,
तो कुछ दीमक की गिरफ्त में है।
कुछ आग में सुलग रहे है,
तो कुछ अंधेरे में पनप रहे।

सब अपनी अपनी जगह बनाए
रुके हुए है....
कहीं कोहरे कि तरह धुंधला
पर जाएगा,
तो कहीं सूरज के किरणों 
कि तरह बिखर जाएगा।

-शतरूपा उपाध्याय





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