अगर ऐसा हो तो

ज़रा सोचो कभी ;
जीवन बिना उद्देश्य के हो तो,
जैसे पानी मिले बिना प्यास के,
पंछी रहे बगैर अपने पंख फैलाए,
और वसंत आए बिना फूलों के।

ज़रा ठहर जाओ ;
मान लों रास्ते हो बिना रुकावटों के,
जैसे पेड़ हो बिना अपनी शाखाओं के,
बारिश हो बिना बादल छाए,
और हवाएं चलें दिशा हीन बनके।

ज़रा देखो कभी ;
अगर आसमान हो बिना चमकते सितारों के,
जैसे कागज़ हो बिना स्याही के,
नदिया बहें बिना किसी तरंग के,
और पर्वत अटल रहे बिना अपने शिखर के।

ज़रा मेहसूस करों ;
अगर किसी की रूह बने बिना जज़्बातों के,
जैसे ज़िंदगी हो बिना किसी चाहतों के,
किताबें हो बिना ख्वाहिशों के,
और कहानी रुकी हो एक अनचाहे मोड़ पे।

- शतरूपा उपाध्याय
       


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