गुज़र जाए जो वक्त......

कभी देखा है उन राहों से गुज़र के,
जिनकी सुबह शायद कभी ;
हमारे कदमों के इंतजार में रहते ,
हर अनचाहे गुफ्तगू की गवाई बनते ,
और अनगिनत यादों को कैद कर लेते।
तो ज़रा उन पन्नों को पलट कर देखना,
उस सफ़ेद पन्ने को रंगीन शायद कुछ,
मुसाफिरों ने बनाया होगा ;
जिनसे जाने अंजाने जुड़ाव हो गया।
कहीं थोड़ी बेफिक्री ,तो कहीं थोड़ी हिचक,
कुछ अलग अलग थे, पर कुछ एक सा भी।
कुछ विचारों के विरोध में, तो कहीं मैत्री का भाव,
चल पड़े हम एक बेहतर मंजिल की मुलाकात में।
कुछ पल गम के, तो कुछ हसीं से भरे,
कई बार हौसलें बिखर गए और टूटे भी,
मगर हिम्मत जुटाने के लिए आगे भी तो आए कई,
अपने अपने मुस्कानों की गर्माहट लिए।
रास्तों का खत्म होना तो तय था,
लेकिन राहों में मिले इन सुकून के पलों से,
जिंदगी की रेल गाड़ी में ठहराव सा छाया।
इन मुट्ठी भर यादों की जगह आज भी
मुकम्मल है, दिल के किसी कोने में,
बसे है एक ख्वाब बनकर।

- शतरूपा उपाध्याय





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