ट्रेन स्टेशन

"यात्री गण कृपया ध्यान दे....." माइक्रोफोन से आती हुई यह आवाज़ लोगों के दिलों में उत्सुकता और भावुकता दोनो जगा दिया करती है। किसी के लिए यह एक नई चाह होती है तो कभी कभी यह सिर्फ एक राह गुज़र बनकर रह जाती है। ट्रेन का आना या जाना लोगो के जज़्बातों को बदल देते। 

वक्त के बड़े ही पाबंद है लोग यहां, गिरते - संभालते किसी ना किसी तरह अपने ज़िंदगी की गाड़ी को जकड़ने के लिए रोज़ाना निकल पड़ते। जब हमारे कदम स्टेशन छोड़ ट्रेन में जाकर रुकते , भले ही एक स्टेशन पीछे छूटे लेकिन एक नए मंज़िल को पाने की चाहत में एक तुष्टता छाई रहती है, मन के किसी कोने में।
 
यहां बातें  फुरसतों में नहीं हो पाती। अक्षर लोगों के आवाज़ शोर बनकर गूंजती है। लोगों का यह कहना "फिर मिलेंगे" एक उम्मीद देती है, मगर चाहे अनचाहे कुछ लोग कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते। लेकीन प्लेटफार्म में खरे एक स्टेशन ओवर ब्रिज से सिर्फ दो प्लेटफार्म ही नहीं, बल्की लोगों के बीच की दरमियान भी कम होती है।

स्टेशन में आम तौर पे एक जाना पहचाना सा हलचल हमेशा छाया रहता है। मगर इस चहल पहल में भी सबकी आंखें किसी अपने को ही तलाश करती है। न जाने यह जगह कितने अनगिनत वादों का गवा बना होगा, कुछ मुकम्मल हुई तो कुछ मंजिल को अभी भी तराश रही है। "इंतजार" शायद ट्रेन स्टेशन का ही दूसरा नाम है......

- शतरूपा उपाध्याय





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