अक्षर मुझसे जुड़ा रहता है,
जैसे की सूरज हर सहर से।
ना कोई पिंजरा है
और ना हीं किसी लकीर से बंधन।
फिर क्यों लोग मेरे हर उड़ान को
देते है इससे जोड़कर उदाहरण?
नदी के तीर से गुज़रना,
पर्वत की ऊंचाई को चीरना,
समंदर की गहराई को टटोलना,
किसी घने छाव के नीचे ठहर जाना,
क्या यह आज़ादी की परिभाषा है?
नहीं, बस चाहतें है उनकी
इन लम्हों को कैद करने की।
पर मैं आज़ाद हूं
इस खयाल से;
"आज़ादी मिलती हैं सिर्फ,
आसमान में पंख फैलाने से"
हूं मैं एक पंछी
आज़ादी है मेरे सोच की परछाई।
तो बताइए इसमे आपकी क्या राय?
- शतरूपा उपाध्याय
6 Comments
Fantastic indeed!
ReplyDelete- Sanjukta
This is so amazingly written 😭😍😍😍😍😍
ReplyDeleteExcellent keep up the good work 💪
ReplyDeleteChaliye jao didi
ReplyDeleteBeautiful👏
ReplyDeleteBeautifully crafted
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