दूसरे हात में पकड़ा एक डस्टर,
इसी पाठशाला को बनाए रखा,
अपना घर जीवनभर।
गणित की गिनती हो,
या इतिहास का प्रभाव,
इन सबको आसानी से,
समझना था इनका स्वभाव।
कभी नरमी से काम लिया,
तो कभी कठोरता को अपनाया,
इसी तरह धीरे धीरे,
सही और गलत का फर्क समझाया।
कुछ सीखा रहे थे और कुछ
सीखने का दर्पण दिखा रहे थे,
इसी तरह आने वाले भविष्य का,
मार्ग दर्शन कर रहे थे।
किताबों में लिखें गए थे,
जो काले अक्षर,
उन्हें हम तक जोड़ने का
ज़रिया थे यही "शिक्षक"।
– शतरूपा उपाध्याय
4 Comments
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ReplyDeleteSimply wonderful
ReplyDelete🏅wonderful
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