मौसमी फूल के बदलने की तरह
आसमान में रंगों के तरंग की तरह
यूं बेवजह तो कोई याद आता नहीं
मन के दीवारो को यूं कतराता नहीं
हर अल्फाज़ यूं ही समाया नहीं करते
वक्त दर वक्त यूं ही सताया नहीं करते
तन्हाई में भी एक मासूम सी मुस्कुराहट
जो दे जाती किसी के आने की आहट
अचानक नजरों के मिलने पर यूं मीचना
कनखियों में यूं ही किसिका अटक जाना
कुछ लम्हों का इकरार की ख्वाहिश में गुज़रना
ज़बान पर उन लफ्जों का हिचकिचाना
एक चाहत वक्त के ठहराव की
जिसमें कोशिश यादों को कैद करने की
बीते हुए दिन का रूठना मनाना
अंत में जो अधूरा था उसे पूरा कर जाना
- शतरूपा उपाध्याय
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