एहसास

थोड़ी सी हैरत होती हैं
तुम मुझे, आज भी याद आते हो!
कभी सूखे पत्तो के आहट में,
तो कभी सहर के ओस के बूंदों में।
हवाओं के बदलते दिशाओं में,
तो कभी पानी की ठहराव में ।
तुम्हारे अंगीनत अल्फ़ाज़ों में,
तो कभी खामोशी के दस्तक में।
कभी पर्दो के सिलवाटो में,
तो कभी रेशम के धागों में।
कभी जगनुओ की जगमगाहट में,
तो कभी अंधेरे की घबराहट में।
कभी रास्तों के करवटों में,
तो कभी तुम्हारे इंतज़ार में ।
तुम शायद कभी,
दूर थे ही नहीं।
यहीं पर थे,
मेरे एहसासों में।

- शतरूपा उपाध्याय

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