एक मुकम्मल सा जहान हैं
जहां कल्पनाओं में बंधे हुए
हकीकत से नाराज़ हैं।
इस सफ़र में
ना कोई मंज़िल हैं, और
ना ही दो राहें।
सिर्फ कुछ कहानियां अलफाजों में लिपटी
एक गहरी राज़ हैं।
यहां रोज़ बदलता,
हर किसी का नज़रिया ।
कुछ पाने की प्यास में
कुछ खुद को खोने की आरज़ू में सिमटा।
यहां अपने विचार व्यक्त करने के
तरीके अलग अलग हैं।
पर किसे पता था की,
बोलने,सुनने और समझने की
प्रक्रिया तत्काल में अभी बंद हैं।
– शतरूपा उपाध्याय
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